मौसम और जलवायु
मौसम
किसी स्थान पर हर घंटे या हर दिन वायुमंडल की परिस्थिति को मौसम कहते हैं। मौसम हर दिन बदलता रहता है। मौसम दिन में कई बार बदल सकता है। मौसम कभी सुहाना होता है, कभी तेज गर्मी लगती है, तो कभी सर्दी लग सकती है।
जलवायु
किसी स्थान पर एक लंबे समय के लिए मौसम की औसत परिस्थिति को उस स्थान की जलवायु कहते हैं। किसी स्थान की जलवायु को परिभाषित करने के लिए उस स्थान के बीस वर्षों या अधिक के मौसम के पैटर्न पर गौर किया जाता है। जब हम कहते हैं कि भारत की जलवायु गर्म और आर्द्र है तो इसका मतलब है कि भारत के अधिकतर हिस्सों में साल के अधिकतर महीने ऐसा ही मौसम रहता है।
मौसम विज्ञान
वायुमंडल के अध्ययन को मौसम विज्ञान कहते हैं। मौसम विज्ञानी मौसम संबंधी आंकड़े का अध्ययन करते हैं और फिर मौसम की भविष्यवाणी करते हैं। मौसम और जलवायु को समझने के लिए इन बातों का अध्ययन किया जाता है: तापमान, वायु दाब, पवन और नमी।
तापमान
हवा की गर्मी या ठंडेपन के माप को तापमान कहते हैं। दिन और रात के तापमान अलग-अलग होते हैं। हर मौसम में तापमान बदल जाता है। तापमान को मापने के लिए थर्मामीटर का प्रयोग होता है।
आतपन
सूर्य से आने वाली ऊर्जा के कुछ हिस्से को पृथ्वी रोक लेती है। उर्जा के इस भाग को आतपन कहते हैं। जब हम विषुपत रेखा से ध्रुवों की ओर बढ़ते हैं तो आतपन की मात्रा कम होती है। इसलिए विषुवत की तुलना में ध्रुव बहुत ठंडे होते हैं।
वायु दाब
हमारे ऊपर हवा द्वारा बहुत अधिक दबाव पड़ता है। लेकिन हम इसे महसूस नहीं करते क्योंकि हमारा शरीर इस दाब के के प्रतिरोध में बल लगाता है। पृथ्वी की सतह पर वायु के भार से लगने वाले दाब को वायु दाब कहते हैं।
जब हम अधिक ऊँचाई पर जाते हैं तो वायु दाब घटता है। इसलिए समुद्र की सतह पर वायु दाब अधिक होता है, जबकि पहाड़ों पर वायु दाब कम होता है। तापमान बदलने पर वायु दाब भी बदलता है। तापमान अधिक होने पर वायु दाब कम होता है, जबकि तापमान कम होने पर वायु दाब अधिक होता है। दाब कम होने से बादल घिर आते हैं और मौसम नम हो जाता है। दाब अधिक होने से आसमान साफ हो जाता है और धूप खिल जाती है। पवन हमेशा अधिक दाब से कम दाब की ओर गति करती है। वायु दाब मापने के लिए बैरोमीटर का प्रयोग होता है।
पवन
गतिशील वायु को पवन कहते हैं। पवन के मुख्य प्रकार नीचे दिए गए हैं।
- स्थाई पवन: यह पवन पूरे वर्ष एक ही दिशा में चलती रहती है। उदाहरण: व्यापारिक पवन, पूर्वी पवन और पश्चिमी पवन।
- मौसमी पवन: इस तरह की पवन की दिशा मौसम के हिसाब से बदलती रहती है। उदाहरण: भारत की मानसून पवन।
- स्थानीय पवन: इस तरह की पवन किसी क्षेत्र में दिन के किसी खास समय या फिर वर्ष के किसी खास समय में चलती है। उदाहरण: समुद्री समीर, थल समीर, लू, आदि।
आर्द्रता
गर्मी के कारण जलाशयों और जमीन से जल का वाष्पीकरण होता है, और जलवाष्प बनती रहती है। हवा में नमी की मात्रा को आर्द्रता कहते हैं। जब हवा का तापमान बढ़ता है तो उसमें नमी धारण करने की क्षमता बढ़ जाती है।
वर्षण
जब जलवाष्प अधिक ऊँचाई पर पहुँचती है तो उसका संघनन होने के कारण जल की बूँदें बन जाती है। ऐसी बूँदों के विशाल संग्रह को बादल कहते हैं। जब बूँदों का भार इतना अधिक हो जाता है कि वह ऊपर आसमान में नहीं टिक सकती हैं, तो वे वर्षा के रूप में नीचे गिर जाती हैं। वर्षा तीन प्रकार की होती है: संवहनी वर्षा, चक्रवाती वर्षा और पर्वतीय वर्षा।
संवहनीय वर्षा: जब पृथ्वी का कोई हिस्सा अपने आसपास की तुलना में अधिक गरम हो जाता है तो इस हिस्से से प्रचुर मात्रा में वाष्पीकरण होता है। संवहन के कारण नम हवा ऊपर उठ जाती है जिससे बादल का निर्माण होता है। इन बादलों से होने वाली वर्षा को संवहनीय वर्षा कहते हैं। संवहनीय वर्षा की मात्रा तेजी से बदलती रहती है। यह वर्षा कम समय के लिए होती है।
चक्रवाती वर्षा: यह वर्षा चक्रवात बनने के कारण होती है। जब गर्म हवा और ठंडी हवा का मिलन होता है तो चक्रवात बनता है।
पर्वतीय वर्षा: जब हवा की बड़ी राशि किसी ऊँची संरचना (जैसे पहाड़) के कारण ऊपर उठ जाती है तो पर्वतीय वर्षा होती है। ऊपर उठने वाली हवा के ठंडा होने से बादल बनते हैं और फिर वर्षा होती है। पहाड़ की दूसरी तरफ रेन शैडो एरिया बन जाता है जहाँ बारिश बिलकुल नहीं होती है।