सौर मंडल
आप क्या सीखेंगे
- खगोलीय पिंड
- तारे और ग्रह
- सौर मंडल
खगोलीय पिंड: हम आकाश में अनगिनत चमकदार पिंडों को देख पाते हैं, जैसे कि सूर्य, चंद्रमा, तारे, ग्रह, इत्यादि। इन पिंडों को खगोलीय पिंड कहते हैं।
तारा: कुछ खगोलीय पिंड बहुत ही विशाल और गर्म होते हैं और गैसों से बने होते हैं। इन खगोलीय पिंडों की अपनी ऊष्मा और प्रकाश होता है। जो खगोलीय पिंड अपना प्रकाश और ऊष्मा विसर्जित करता है उसे तारा कहते हैं। सूर्य एक तारा है। तारे से आने वाली रोशनी कांपती हुई दिखती है। इसे तारों का टिमटिमाना कहते हैं।
सूर्य हमसे काफी नजदीक है, इसलिए बहुत बड़ा दिखता है। अन्य तारे हमसे बहुत दूर हैं, इसलिए वे चमकदार बिंदुओं की तरह दिखाई देते हैं। आपको तो पता ही होगा कि जब चीजें हमसे दूर होती जाती हैं तो वे छोटी नजर आती हैं। तारे केवल रात में दिखाई देते हैं। दिन के समय सूर्य की रोशनी के कारण तारे दिखाई नहीं देते हैं।
नक्षत्रमंडल
रात में जब आप गौर से आकाश में देखेंगे तो आपको लगेगा कि तारों के कुछ समूह अलग-अलग पैटर्न बनाते हैं। तारों के ऐसे पैटर्न को नक्षत्रमंडल कहते हैं। नक्षत्रमंडल का एक उदाहरण है अर्सा मेजर या बिग बियर। अर्सा माइनर या स्मॉल बियर एक दूसरा नक्षत्रमंडल है जो अर्सा मेजर जैसा दिखता है लेकिन आकार में बहुत छोटा होता है। अर्सा मेजर को हिंदी में सप्तऋषि कहते हैं, क्योंकि इस नक्षत्रमंडल में सात मुख्य तारे हैं। दोनों ही नक्षत्रमंडल किसी कलछी की तरह दिखते हैं, इसलिए इन्हें बिग डिप्पर और स्मॉल डिप्पर भी कहते हैं। किसी बड़े की मदद से आप इन्हें आसानी से आसमान में देख सकते हैं। इनकी मदद से आप ध्रुवतारे को भी खोज सकते हैं।
उत्तरी गोलार्ध में ध्रुवतारा हमेशा उत्तर दिशा में दिखता है। आकाश में ध्रुवतारे की स्थिति निश्चित होती है और पूरे रात के दौरान बदलती नहीं है। इसलिए पुराने जमाने में ध्रुवतारे की मदद से नाविक और कारवां वाले अपना रास्ता ढ़ूंढ़ लेते थे।
ग्रह: कुछ खगोलीय पिंड किसी एक तारे के चारों ओर चक्कर लगाते रहते हैं। इन्हें ग्रह कहते हैं। ग्रह के पास अपना प्रकाश नहीं होता है। हमारी पृथ्वी एक ग्रह है।
तारे और ग्रह में अंतर
तारा | ग्रह |
---|---|
यह विशाल आकार का होता है। | तारे की तुलना में यह छोटे आकार का होता है। |
इसका अपना प्रकाश होता है। | इसका अपना प्रकाश नहीं होता है। |
तारे टिमटिमाते हैं। | ग्रह नहीं टिमटिमाते हैं। |
उपग्रह: कुछ खगोलीय पिंड किसी ग्रह का चक्कर लगाते हैं। इन्हें उपग्रह कहते हैं। उपग्रह का एक अच्छा उदाहरण है चंद्रमा। आजकाल मानव-निर्मित या कृत्रिम उपग्रह भी अंतरिक्ष में घूमते रहते हैं।
कृत्रिम उपग्रह के उपयोग:
- टेलिविजन और टेलिफोन के सिग्नल भेजने के लिए
- पृथ्वी के चित्र भेजने के लिए
- जलवायु के बारे में आंकड़े भेजने के लिए। वैज्ञानिक इन आंकड़ों का इस्तेमाल करके मौसम की भविष्यवाणी करते हैं।
सौर मंडल
सौर मंडल के अवयव हैं सूर्य, आठ ग्रह, कुछ अन्य खगोलीय पिंड, क्षुद्रग्रह और उल्कापिंड।
सूर्य
सूर्य ही सौर मंडल का केंद्र है। यह विशाल आकार का है और तप्त गैसों से बना हुआ है। सूर्य के आकर्षण बल के कारण सौर मंडल के सदस्य एक दूसरे से बंधकर रहते हैं। सूर्य से हम बहुत दूर रहते हैं इसलिए हमें इसकी अत्यधिक ऊष्मा का अहसास नहीं होता है। दरअसल, सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी 15 करोड़ किमी है।
प्रकाश कि गति 300,000 किमी प्रति सेकंड होती है। इतनी तेज गति से चलने पर भी प्रकाश को सूर्य से पृथ्वी तक पहुँचने में लगभग 8 मिनट लग जाते हैं।
ग्रह: सौर मंडल में 8 ग्रह हैं, जिनके नाम हैं: बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, यूरेनस और नेपच्यून।
पहले प्लूटो को भी एक ग्रह माना जाता था। लेकिन 2006 में इंटरनेशनल एस्ट्रोनॉमिकल यूनियन के वैज्ञानिकों ने यह तय किया कि प्लूटो को ‘बौने ग्रह’ की श्रेणी में रखा जाये।
पृथ्वी
सूर्य से दूरी के क्रम में पृथ्वी तीसरे नम्बर पर आती है। यह सौर मंडल का पाँचवां सबसे बड़ा ग्रह है। पृथ्वी का आकार गोल है जो अपने दोनों सिरों पर चपटा है। ऐसे आकार को भू-आभ (जीऑयड) आकार कहते हैं।
पृथ्वी इकलौता ज्ञात ग्रह है जहाँ जीवन मौजूद है। पृथ्वी ना तो अधिक गर्म है न अधिक ठंडी। यहाँ पर पानी और हवा मौजूद है। सजीवों के लिए पानी अत्यंत आवश्यक है। हवा में ऑक्सीजन उपस्थित है जो सजीवों के लिए अत्यंत आवश्यक है। इस तरह से पृथ्वी पर जीवन को पालने के लिए बिलकुल सही परिस्थितियाँ मौजूद हैं।
पृथ्वी का लगभग दो तिहाई हिस्सा पानी से ढ़का हुआ है। इसलिए अंतरिक्ष से देखने पर पृथ्वी नीले रंग की दिखाई देती है। इसलिए पृथ्वी को नीला ग्रह भी कहते हैं।
चंद्रमा
सौर मंडल में हमारा सबसे नजदीकी पड़ोसी है चंद्रमा। यह पृथ्वी का इकलौता उपग्रह है। पृथ्वी से चन्द्रमा की दूरी 384,000 किमी है। पृथ्वी से इतना नजदीक होने के कारण ही यह अन्य खगोलीय पिंडों की तुलना में बहुत बड़ा दिखता है। चंद्रमा का व्यास पृथ्वी के व्यास का एक चौथाई ही है।
चंद्रमा को पृथ्वी के चारों ओर एक चक्कर लगाने में 27 दिन लगते हैं। चंद्रमा को अपने अक्ष पर एक बार घूमने में भी 27 दिन ही लगते हैं। यही कारण है कि चंद्रमा का एक हिस्सा कभी भी धरती से दिखाई नहीं देता है। इसलिए हम अलग-अलग दिनों पर चंद्रमा की अलग-अलग कलाएँ देख पाते हैं।
चंद्रमा की कलाएँ: जब चंद्रमा एक वृत्ताकार तश्तरी के रूप में दिखता है तो इसे पूर्ण चंद्र या पूर्णिमा का चांद कहते हैं। जब आकाश में चांद बिलकुल नहीं दिखता है तो उस रात को अमावस्या कहते हैं। इसे नवचंद्र भी कहते हैं। जब चंद्रमा किसी हँसिये की तरह दिखता है तो इसे नवचंद्र कहते हैं। इस तरह से चंद्रमा की आकृति बदलती रहती है। महीने में एक बार पूर्णिमा होती है और एक बार अमवास्या।
चंद्रमा की जलवायु बहुत ही कठोर है और जीवन के लिए अनुकूल नहीं है। चंद्रमा की सतह पर अनगिनत पहाड़ और गड्ढ़े हैं। पूर्णिमा के चांद को गौर से देखने पर इन पहाड़ों और गड्ढ़ों को देखा जा सकता है।
क्षुद्रग्रह
सूर्य के चारों ओर असंख्य छोटे-छोटे पिंड घूमते रहते हैं। ये पिंड मंगल और बृहस्पति की कक्षाओं के बीच रहते हैं। इन्हें क्षुद्रग्रह कहते हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि क्षुद्रग्रह उन ग्रहों के टुकड़े हैं जो करोड़ों वर्ष पहले विस्फोट के कारण टूट गये थे।
उल्का और उल्कापिंड
सूर्य के चारों ओर घूमने वाले पत्थरों के छोटे-छोटे टुकड़ों को उल्कापिंड कहते हैं। कई बार ये धरती के वायुमंडल में प्रवेश कर जाते हैं। वायुमंडल में प्रवेश करते समय घर्षण के कारण इतनी ऊष्मा उत्पन्न होती है कि पत्थर के ये टुकड़े जलकर राख हो जाते हैं। ऐसे समय में ये आकाश से तेजी से गुजरने वाली एक चमकीली रेखा के रूप में नजर आते हैं। इसे उल्का कहते हैं। कभी कभी साबुत उल्कापिंड भी पृथ्वी की सतह पर गिर जाता है। वैज्ञानिकों का मानना है उल्का गिरने से ही डायनोसॉर का अंत हो गया था।
आकाशगंगा: करोड़ों तारों के एक तंत्र को आकाशगंगा कहते हैं। हमारी आकाशगंगा का अंग्रेजी नाम मिल्की वे है। रात में जब आसमान साफ होता है तो आपको एक तरफ से दूसरी तरफ जाती हुई एक सफेद चमकीली पट्टी दिखाई देगी। यही हमारी आकाशगंगा है।
ब्रह्मांड: हमारा ब्रह्मांड करोड़ों आकाशगंगाओं से मिलकर बना है। यह इतना विशाल है कि वैज्ञानिक अब तक ब्रह्मांड के आकार का सही अनुमान नहीं लगा पाये हैं।