पौधों को जानिये
पत्ती
यह एक पतली, चपटी और हरे रंग की रचना होती है। क्लोरोफिल नामक पदार्थ की उपस्थिति के कारण पत्तियों का रंग हरा होता है। पत्ती के चपटे भाग को फलक कहते हैं। पत्ती एक डंठल के द्वारा तने से जुड़ी होती है। इस डंठल को पर्णवृंत कहते हैं।
शिराविन्यास: पत्तियों में शिराओं की सजावट को शिराविन्यास कहते हैं। शिराविन्यास दो प्रकार का होता है: जालिका रूपी और समांतर। जब शिराएँ एक जाल जैसी रचना बनाती हैं तो ऐसे शिराविन्यास को जालिकारूपी कहते हैं। जब शिराएँ एक दूसरे के समांतर रहती हैं तो इसे समांतर शिराविन्यास कहते हैं।
जब आप गौर से देखेंगे तो पायेंगे कि जिन पौधों में मूसला जड़ होती है उन पौधों की पत्तियों में जालिकारूपी शिराविन्यास होता है। जिन पौधों में रेशेदार जड़ होती है उन पौधों की पत्तियों में समांतर शिराविन्यास होता है।
स्टोमेटा या रंध्र: पत्ती की निचली सतह पर असंख्य छोटे छोटे छिद्र होते हैं। इन्हें स्टोमेटा या रंध्र कहते हैं। रंध्रों से होकर गैसों का आदान प्रदान होता है। प्रकाश संश्लेषण के लिए जरूरी कार्बन डाइऑक्साइड इन्हीं रंध्रों से होकर पत्ती के अंदर जाता है। इसी तरह श्वसन के लिए ऑक्सीजन अंदर जाता है। रंध्रों से होकर जलवाष्प भी निकलता है। पौधों में जलवाष्प निकलने की इस प्रक्रिया को वाष्पोत्सर्जन कहते हैं।
पत्ती के कार्य
- पत्ती का मुख्य कार्य है भोजन बनाना। सूर्य के प्रकाश और क्लोरोफिल की उपस्थिति में कार्बन डाइऑक्साइड और जल लेकर पौधे भोजन बनाते हैं। इस प्रक्रिया को प्रकाश संश्लेषण कहते हैं।
- पत्ती का काम वाष्पोत्सर्जन करना भी है।
पुष्प
पुष्प या फूल किसी भी पौधे का सबसे सुंदर और रंगीन अंग होता है। यह पौधे का प्रजनन तंत्र होता है। पुष्प के मुख्य भाग हैं: बाह्यदल, पंखुड़ी, पुंकेसर और स्त्रीकेसर।
बाह्यदल: फूल का सबसे बाहरी चक्र पत्तियों जैसी हरी संरचनाओं का बना होता है। इस चक्र को बाह्यदल कहते हैं। यह कलिका अवस्था में पुष्प की सुरक्षा करता है।
पंखुड़ी: फूल का दूसरा चक्र पंखुड़ियों से बना होता है। इसे कोरोला कहते हैं। पंखुड़ियों के चटख रंगों से कीट और पक्षी आकर्षित होते हैं। इससे परागन में मदद मिलती है।
पुंकेसर: यह एक पतली डंडी जैसी संरचना होती है जिसके ऊपर कैप्सूल जैसी संरचना लगी होती है। पतली डंडी को तंतु कहते हैं। कैप्सूल को परागकोष कहते हैं। परागकोष के अंदर पराग बनता है।
स्त्रीकेसर: यह पुष्प का मादा अंग होता है। यह एक फ्लास्क जैसी संरचना है जो पुष्प के बीच में रहती है। स्त्रीकेसर के तीन भाग होते हैं। सबसे निचला हिस्सा फूला हुआ होता है जिसे अंडाशय कहते हैं। अंडाशय में अंडप बनते हैं। बीच का डंडीनुमा हिस्सा वर्तिका कहलाता है। सबसे चोटी के हिस्से को वर्तिकाग्र कहते हैं। वर्तिकाग्र चिपचिपा होता है।
परागन: परागकोष से वर्तिकाग्र तक परागकणों के स्थानांतरण की प्रक्रिया को परागन कहते हैं। परागन के बाद ही प्रजनन के अगले चरण सम्पन्न होते हैं।