6 विज्ञान

कचरा संग्रहण एवं निपटान

कचरा: हम प्रतिदिन ढ़ेर सारा कचरा उत्पन्न करते हैं। जो चीज हमारे किसी काम की नहीं होती है उसे कचरा कहते हैं। घर से निकले हुए अपशिष्ट या कू‌ड़े कचरे में सब्जियों और फलों के छिलके, बचा हुआ भोजन, कागज, प्लास्टिक और कई अन्य पदार्थ होते हैं। हमारे घरों और आसपास स्वच्छता रखने के लिए कचरे का सही निपटान जरूरी होता है।

कचरे का निपटान

हम अक्सर सड़क के किनारे रखे कूड़ेदान में कचरा डालते हैं। कुछ शहरों में सफाई कर्मचारी हर घर से कचरा इकट्ठा करते हैं। उसके बाद सफाई कर्मचारी उस कचरे को किसी ढ़लाव पर डाल देते हैं।

कचरे के ढ़लाव से नगरपालिका का ट्रक कचरा उठाकर ल्रे जाता है। इस कचरे को भराव स्थल पर पहुँचा दिया जाता है। भराव स्थल अक्सर रिहायशी इलाके से दूर बनाये जाते हैं।

कचरे में दो प्रकार के पदार्थ होते हैं: उपयोगी और अनुपयोगी। उपयोगी पदार्थ का पुन:चक्रण करके नये सामान बनाये जा सकते हैं। अनुपयोगी पदार्थ को भराव स्थल पर डाल दिया जाता है और फिर मिट्टी से ढ़क दिया जाता है। इस कचरे को कम से कम 20 वर्षों के लिए छोड़ दिया जाता है। उसके बाद ही भराव स्थल पर कोई निर्माण कार्य किया जा सकता है। ऐसे स्थानों पर अक्सर पार्क बनाये जाते हैं। दिल्ली का मिलेनियम पार्क ऐसे ही किसी भराव स्थल पर बना हुआ है।

कम्पोस्ट

कचरे में दो प्रकार के पदार्थ होते हैं: जैव निम्नीकरणीय और जैव अनिम्नीकरणीय। जो पदार्थ सूक्ष्म जीवों द्वारा विगलित हो जाते हैं उन्हें जैव निम्नीकरणीय पदार्थ कहते हैं। सजीवों स्रोतों से मिलने वाले अपशिष्ट जैव निम्नीकरणीय होते हैं। ऐसे पदार्थों से कम्पोस्ट बनाया जा सकता है।

किसान अक्सर खेती के अपशिष्ट, पत्तियों, फसलों की डंठलो और गोबर से कम्पोस्ट बनाते हैं। इसके लिए जमीन पर एक गड्ढ़ा खोदा जाता है। इस गड्ढ़े की तली में एक जाली या रेत की एक परत बिछाई जाती है। उसके बाद कचरे की परतें बिछाई जाती हैं। लगभग दो महीने के बाद, कचरा मिट्टी जैसे पदार्थ में बदल जाता है, जिसे कम्पोस्ट कहते हैं। कम्पोस्ट एक बहुत अच्छी खाद का काम करता है, जिससे मिट्टी अधिक उपजाऊ बनती है।

वर्मीकम्पोसट या कृमिकम्पोस्ट: लाल केंचुए कम्पोस्ट बनने की प्रक्रिया को तेज कर देते हैं। जब केंचुओं की सहायता से कम्पोस्ट बनता है तो इसे वर्मीकम्पोस्ट कहते हैं।

कचरा कम करने के तरीके

कचरा कम करने के लिए हम कुछ कदम उठा सकते हैं। इसके लिये हमें तीन R के सिद्धांत का पालन करना होगा। इसका मतलब है: कम उपयोग, पुन: उपयोग और पुन:चक्रण।

  1. कम उपयोग: अक्सर हम कुछ ऐसी चीजें खरीदते हैं जिनका हम बहुत कम इस्तेमाल करते हैं। कई बार हम ऐसी चीज भी खरीदते हैं जिसकी कोई जरूरत न हो। इन बातों पर ध्यान देकर हम चीजों के उपयोग को कम कर सकते हैं।
  2. पुन: उपयोग: कई पुराने सामानों का हम फिर से उपयोग कर सकते हैं। जैसे; पुराने अखबार से हम किताबों पर जिल्द चढ़ा सकते हैं। जैम और जेली की खाली शीशियों में मसाले और नमक रखे जा सकते हैं। पुराने लिफाफों के ऊपर हम गणित हल करते समय रफ काम कर सकते हैं।
  3. पुन:चक्रण: कई चीजों के पुन:चक्रण से नये सामान बनाये जा सकते हैं। काँच, अखबार, अलमुनियम, आदि का पुन:चक्रण किया जा सकता है। कुछ खास तरह के प्लास्टिक का भी पुन:चक्रण किया जा सकता है।