प्रिंट कल्चर और आधुनिक दुनिया
NCERT Solution
प्रश्न:1 निम्नलिखित के कारण दें:
प्रश्न:a) वुडब्लॉक प्रिंट या तख्ती की छ्पाई यूरोप में 1295 के बाद आई।
उत्तर: मार्को पोलो 1295 में जब चीन से वापस लौटा तो अपने साथ वुडब्लॉक प्रिंटिंग की जानकारी लेकर आया। इसलिए यूरोप में वुडब्लॉक प्रिंटिंग 1295 के बाद आई।
प्रश्न:b) मार्टिन लूथर मुद्रण के पक्ष में था और उसने इसकी खुलेआम प्रशंसा की।
उत्तर: मार्टिन लूथर ने रोमन कैथलिक चर्च की जो आलोचना की थी वह प्रिंट के जरिये ही जनमानस के एक बड़े हिस्से तक पहुँच पाई। इसलिए मार्टिन लूथर मुद्रण के पक्ष में था और उसने इसकी खुलेआम प्रशंसा की।
प्रश्न:c) रोमन कैथलिक चर्च ने सोलहवीं सदी के मध्य से प्रतिबंधित किताबों की सूची रखनी शुरु कर दी।
उत्तर: प्रिंट के कारण बाइबिल की नई व्याख्या लोगों तक पहुँची और लोग चर्च की शक्ति पर सवाल उठाने लगे। इसलिए रोमन कैथलिक चर्च ने सोलहवीं सदी के मध्य से प्रतिबंधित किताबों की सूची रखनी शुरु कर दी।
प्रश्न:d) महात्मा गांधी ने कहा कि स्वराज की लड़ाई दरअसल अभिव्यक्ति, प्रेस, और सामूहिकता के लिए लड़ाई है।
उत्तर: सरकारें जिस तरह से प्रिंट को नियंत्रित करने और कुचलने की कोशिश करती हैं उससे प्रिंट की शक्ति का अंदाजा हो जाता है। अंग्रेजी हुकूमत ने भारत में छपने वाली किताबों और अखबारों पर लगातार नजर रखनी शुरु कर दी और प्रेस को नियंत्रण में लाने के लिए कई कानून भी बनाए। इसलिए गांधी जी ने कहा कि स्वराज की लड़ाई दरअसल अभिव्यक्ति, प्रेस, और सामूहिकता के लिए लड़ाई है।
प्रश्न:2 छोटी टिप्पणी में इनके बारे में बताएँ:
प्रश्न:a) गुटेंबर्ग प्रेस
उत्तर: गुटेनबर्ग किसी व्यापारी के बेटे थे। अपने बचपन से ही उन्होंने जैतून और शराब की प्रेस देखी थी। उसने पत्थरों पर पॉलिस करने की कला भी सीखी थी। उसे सोने के जेवर बनाने में भी महारत हासिल थी और वह लेड के साँचे भी बनाता था जिनका इस्तेमाल सस्ते जेवरों को ढ़ालने के लिए किया जाता था।
इस तरह से गुटेनबर्ग के पास हर वह जरूरी ज्ञान था जिसका इस्तेमाल करके उसने प्रिंटिंग टेक्नॉलोजी को और बेहतर बनाया। उसने जैतून के प्रेस को अपने प्रिंटिंग प्रेस का मॉडल बनाया और अपने साँचों का इस्तेमाल करके छापने के लिए अक्षर बनाये। 1448 इसवी तक गुटेनबर्ग ने अपने प्रिंटिंग प्रेस को दुरुस्त बना लिया था। उसने अपने प्रेस में सबसे पहले बाइबिल को छापा।
प्रश्न:b) छपी किताब को लेकर इरैस्मस के विचार
उत्तर: इरैस्मस का मानना था कि बौद्धिक ज्ञान की अस्मिता के लिए किताबों का छपना अच्छी बात नहीं थी। उसका सोचना था कि प्रिंट के कारण बाजार में घटिया किताबें भर जाएँगी जिससे समाज को लाभ के स्थान पर घाटा अधिक होगा। घटिया किताबों की भीड़ में अच्छी रचना का अस्तित्व ही मिट जायेगा।
प्रश्न:c) वर्नाकुलर या देसी प्रेस एक्ट
उत्तर: वर्नाकुलर प्रेस एक्ट को 1878 में पारित किया गया। इस कानून ने सरकार को वर्नाकुलर प्रेस में समाचार और संपादकीय पर सेंसर लगाने के लिए अकूत शक्ति प्रदान की। राजद्रोही रिपोर्ट छपने पर अखबार को चेतावनी दी जाती थी। यदि उस चेतावनी का कोई प्रभाव नहीं पड़ता हा तो फिर ऐसी भी संभावना होती थी कि प्रेस को बंद कर दिया जाये और प्रिंटिंग मशीनों को जब्त कर लिया जाये।
प्रश्न:3 उन्नीसवीं सदी में भारत में मुद्रण संस्कृति के प्रसार का इनके लिए क्या मतलब था:
प्रश्न:a) महिलाएँ
उत्तर: महिलाओं के जीवन और संवेदनाओं पर कई लेखकों ने लिखना शुरु किया। इसके कारण मध्यम वर्ग की महिलाओं में पढ़ने की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ी। कई ऐसे पिता या पति आगे आये जो स्त्री शिक्षा पर जोर देते थे। कुछ महिलाओं ने घर पर रहकर ही शिक्षा प्राप्त की, जबकि कुछ अन्य महिलाओं ने स्कूल जाना भी शुरु किया।
लेकिन पुरातनपंथी हिंदू और मुसलमान अभी भी स्त्री शिक्षा के खिलाफ थे। उनका मानना था कि शिक्षा से लड़कियों के दिमाग पर बुरे प्रभाव पड़ेंगे। लोग चाहते थे कि उनकी बेटियाँ धार्मिक ग्रंथ पढ़ें लेकिन उसके अलावा और कुछ न पढ़ें।
प्रश्न:b) गरीब जनता
उत्तर: मद्रास के शहरों में उन्नीसवीं सदी में सस्ती और छोटी किताबें आ चुकी थीं। इन किताबों को चौराहों पर बेचा जाता था ताकि गरीब लोग भी उन्हें खरीद सकें। बीसवीं सदी के शुरुआत से सार्वजनिक पुस्तकालयों की स्थापना शुरु हुई जिसके कारण लोगों तक किताबों की पहुँच बढ़ने लगी। कई अमीर लोग अपने क्षेत्र में अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाने के उद्देश्य से पुस्तकालय बनाने लगे। इससे गरीब लोग भी किताबें पढ़ने लगे और बदलती दुनिया के बारे में जानने लगे। इससे इतना फायदा हुआ कि कई मजदूरों ने भी किताबें लिखीं।
प्रश्न:c) सुधारक
उत्तर: प्रिंट ने समाज सुधारकों का काम आसान कर दिया। उनके नये विचार अब आसानी से जन मानस तक पहुँच सकते थे। पुरानी मान्यताओं पर खुल कर बहस संभव हो गया। इससे समाज को काफी फायदा हुआ।
प्रश्न:4अठारहवीं सदी के यूरोप में कुछ लोगों को क्यों ऐसा लगता था कि मुद्रण संस्कृति से निरंकुशवाद का अंत, और ज्ञानोदय होगा?
उत्तर: प्रिंट के कारण ज्ञानोदय के विचारकों के विचार लोकप्रिय हुए। इन विचारकों ने परंपरा, अंधविश्वास और निरंकुशवाद की कड़ी आलोचना की। प्रिंट के कारण संवाद और वाद-विवाद की नई संस्कृति का जन्म हुआ। अब आम आदमी भी मूल्यों, संस्थाओं और प्रचलनों पर विवाद करने लगा और स्थापित मान्यताओं पर सवाल करने लगा। इन सब बदलावों से कुछ लोगों को लगने लगा त्था कि मुद्रण संस्कृति से निरंकुशवाद का अंत, और ज्ञानोदय होगा।
प्रश्न:5 कुछ लोग किताबों की सुलभता को लेकर चिंतित क्यों थे? यूरोप और भारत से एक एक उदाहरण लेकर समझाएँ।
उत्तर: रूढ़िवादी लोगों को लगता था कि किताबें पढ़ने से लोगों के दिमाग फिर जाएँगे। यूरोप के कैथलिक चर्च को लगता था कि लोग उसकी अवहेलना करना शुरु कर देंगे। भारत के रूढ़िवादियों को लगता था कि लोग पारंपरिक मान्यताओं को तोड़ने लगेंगे और उससे सामाजिक विध्वंस हो जायेगा। इसलिए ऐसे लोग किताबों की सुलभता को लेकर चिंतित थे।
प्रश्न:6 उन्नीसवीं सदी में भारत में गरीब जनता पर मुद्रण संस्कृति का क्या असर हुआ?
उत्तर: मद्रास के शहरों में उन्नीसवीं सदी में सस्ती और छोटी किताबें आ चुकी थीं। इन किताबों को चौराहों पर बेचा जाता था ताकि गरीब लोग भी उन्हें खरीद सकें। बीसवीं सदी के शुरुआत से सार्वजनिक पुस्तकालयों की स्थापना शुरु हुई जिसके कारण लोगों तक किताबों की पहुँच बढ़ने लगी। कई अमीर लोग अपने क्षेत्र में अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाने के उद्देश्य से पुस्तकालय बनाने लगे। इससे गरीब लोग भी किताबें पढ़ने लगे और बदलती दुनिया के बारे में जानने लगे। इससे इतना फायदा हुआ कि कई मजदूरों ने भी किताबें लिखीं।
प्रश्न:7 मुद्रण संस्कृति ने भारत में राष्ट्रवाद के विकास में क्या मदद की?
उत्तर: प्रिंट संस्कृति से लोगों में संवाद की संस्कृति का विकास हुआ। समाज सुधार के नये विचारों को अब बेहतर तरीके से लोगों तक पहुँचाया जा सकता था। गांधीजी ने अखबारों के माध्यम से स्वदेशी के अर्थ को अधिक शक्तिशाली तरीके से व्यक्त करना शुरु किया। भारत में स्थानीय बोलचाल की भाषाओं में कई अखबार प्रकाशित होने लगे। इससे भारत के जनमानस में राष्ट्रवाद की भावना को फैलाने में काफी मदद मिली। कई दमनकारी नीतियों के बावजूद प्रिंट संस्कृति एक ऐसा आंदोलन था जिसे रोका नहीं जा सकता था।