खनिज संसाधन
प्राकृतिक गैस
प्राकृतिक गैस या तो पेट्रोलियम के साथ पाई जाती है या अकेले भी। इसका इस्तेमाल भी ईंधन और कच्चे माल के तौर पर होता है। कृष्णा गोदावरी बेसिन में प्राकृतिक गैस के बड़े भंडार की खोज हुई है। खंभात की खाड़ी, मुम्बई हाई और अंदमान निकोबार में भी प्राकृतिक गैस के बड़े भंडार हैं।
मुम्बई हाई और कृष्णा गोदावरी बेसिन को पश्चिमी और उत्तरी भारत के खाद, उर्वरक और औद्योगिक क्षेत्रों को एक 1700 किमी लम्बी हजीरा-विजयपुर-जगदीशपुर पाइपलाइन जोड़ती है। प्राकृतिक गैस का मुख्य इस्तेमाल उर्वरक और बिजली उत्पादन में होता है। आजकल, सीएनजी का इस्तेमाल गाड़ियों के ईंधन के रूप में भी होने लगा है।
बिजली
विद्युत का उत्पादन मुख्य रूप से दो तरीकों से होता है। एक तरीके में बहते पानी से टरबाइन चलाया जाता है। दूसरे तरीके में कोयला, पेट्रोलियम या प्राकृतिक गैस को ईंधन के रूप में इस्तेमाल करके भाप बनाई जाती है जिससे टरबाइन चलाया जाता है। देश के मुख्य पनबिजली उत्पादक हैं भाखड़ा नांगल, दामोदर वैली कॉरपोरेशन, कोपिली हाइडेल प्रोजेक्ट, आदि। वर्तमान में भारत में 300 से अधिक थर्मल पावर स्टेशन हैं।
गैर परंपरागत ऊर्जा संसाधन
परमाणु ऊर्जा: परमाणु की संरचना में बदलाव करके परमाणु ऊर्जा प्राप्त की जाती है। जब किसी परमाणु की संरचना में बदलाव किया जाता है तो इससे बहुत भारी मात्रा में ताप ऊर्जा निकलती है। इस ऊर्जा का इस्तेमाल बिजली पैदा करने में किया जाता है। इस ऊर्जा से भाप बनाई जाती है जिससे टरबाइन चलाकर बिजली पैदा की जाती है। परमाणु ऊर्जा के निर्माण के लिए यूरेनियम और थोरियम को इस्तेमाल किया जाता है। ये खनिज झारखंड में और राजस्थान की अरावली पहाड़ियों में पाये जाते हैं। केरल में पाई जाने वाली मोनाजाइट रेत में भी थोरियम की प्रचुरता होती है।
सौर ऊर्जा: सौर ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदलने के लिए फोटोवोल्टाइक टेक्नॉलोजी का इस्तेमाल होता है। भुज के निकट माधापुर में भारत का सबसे बड़ा सौर ऊर्जा प्लांट है। सौर ऊर्जा भविष्य के लिए नई उम्मीदें जगाता है। इससे ग्रामीण इलाकों में जलावन और उपलों पर निर्भरता कम करने में मदद मिलेगी। इससे जीवाष्म ईंधन के संरक्षण में भी मदद मिलेगी। सौर ऊर्जा पर्यावरण हितैषी है।
पवन ऊर्जा: भारत को अब विश्व में “पवन सुपर पावर” माना जाता है। तामिलनाडु में नगरकोइल से मदुरै तक के विंड फार्म भारत के सबसे बड़े विंड फार्म क्लस्टर हैं। पवन ऊर्जा के मामले में आंध्र प्रदेश, कर्णाटक, गुजरात, केरल, महाराष्ट्र और तामिलनाडु भी अहम हैं।
बायोगैस: खरपतवार, कृषि अपशिष्ट और पशु और मानव अपशिष्ट से बायोगैस बनाई जा सकती है। केरोसीन, उपले और चारकोल की तुलना में बायोगैस ज्यादा कार्यकुशल है। बायोगैस प्लांट को म्यूनिसिपल, को-ऑपरेटिव और व्यक्तिगत स्तर पर भी बनाया जा सकता है। गोबर गैस प्लांट से ऊर्जा के साथ साथ खाद भी मिलती है।
ज्वारीय ऊर्जा: ज्वारीय ऊर्जा प्राप्त करने के लिए बाँध बनाकर पानी के प्रवाह को नियंत्रित किया जाता है। इसके लिए बने रास्ते से ज्वार के समय पानी बाँध के पीछे पहुँच जाता है और गेट के बंद होने से वहीं रुक जाता है। ज्वार के चले जाने के बाद गेट खोल दिया जाता है जिससे पानी वापस समुद्र की ओर जाने लगता है। पानी के बहाव से टरबाइन चलाये जाते हैं जिससे बिजली बनती है। नेशनल हाइड्रोपावर कॉरपोरेशन ने कच्छ की खाड़ी में 900 मेगावाट का एक ज्वारीय ऊर्जा प्लांट बनाया है।
भू-तापीय ऊर्जा: आपको पता होगा कि धरती के अंदर काफी गरमी होती है। कुछ स्थानों पर यह उष्मा दरारों से होकर सतह पर आ जाती है। ऐसे स्थानों का भूमिगत जल गर्म हो जाता है और भाप के रूप में ऊपर उठता है। इस भाप का इस्तेमाल टरबाइन चलाने में किया जाता है। भारत में प्रयोग के तौर पर भू-तापीय ऊर्जा से बिजली बनाने के दो संयंत्र लगाये गये हैं। उनमे से एक हिमाचल प्रदेश में मणिकरण के निकट पार्वती घाटी में है और दूसरा लद्दाख में पूगा घाटी में है।