मुख्य स्थलाकृतियाँ
पृथ्वी का भूदृश्य हमेशा बदलता रहता है। इस काम में दो बल अपनी भूमिका निभाते हैं: अपक्षय और अपरदन। चट्टानों के टूटने की प्रक्रिया को अपरदन कहते हैं। अपरदन से चट्टानों के टुकड़े बन जाते हैं। जब किसी भूदृश्य को विभिन्न दूत (पवन, जल और हिम) काट छाँट करते हैं तो इस क्रिया को अपरदन कहते हैं। अपरदित पदार्थ को पवन, जल और हिमनद कहीं और ले जाकर जमा कर देते हैं। इस तरह से अपरदन और निक्षेपण के कारण भूदृश्य बदलता रहता है।
नदी के काम
नदी के बहाव से भूदृश्य की काट छाँट होती रहती है। इससे कई आकृतियाँ बनती हैं।
झरना: जब किसी कठोर और खड़ी चट्टान से नदी सीधा नीचे गिरती है तो इसे झरना या जलप्रपात कहते हैं। जलप्रपात पहाड़ी इलाकों में बनते हैं।
विसर्प: नदी जब मैदानों में पहुँचती है तो यह टेढ़ी-मेढ़ी होकर बहती है। इसका आकार किसी साँप की तरह होने के कारण इसे विसर्प कहते हैं।
गोखुर झील: विसर्पों में लगातार अपरदन और निक्षेपण होने के कारण विसर्प का कुछ भाग नदी की मुख्य धारा से अलग हो जाता है और फिर एक झील का निर्माण होता है। इसे छाड़न झील, चाप झील या गोखुर झील कहते हैं।
बाढ़कृत मैदान: जब नदी अपने किनारों से बाहर बहने लगती है तो आस पास के इलाकों में बाढ़ आ जाती है। बाढ़ के समय नदी अपने साथ लाए हुए अवसाद को आस पास के इलाकों में जमा कर देती है। इससे बाढ़कृत मैदान का निर्माण होता है। यह मैदान समतल और उपजाऊ होता है।
तटबंध: नदी के ऊँचे किनारे को तटबंध कहते हैं। तटबंध का निर्माण भी निक्षेपण से होता है।
डेल्टा: जब नदी समुद्र के पास पहुँचती है तो इसकी गति बहुत धीमी हो जाती है। अत्यधिक अवसाद के जमा होने के कारण यहाँ नदी कई शाखाओं में बँट जाती है। इन शाखाओं को नदी की वितरिका कहते हैं। हर वितरिका का अपना अलग मुहाना होता है। मुहानों पर अलग अलग वितरिकाओं के अवसाद के जमा होने से जो जमीन तैयार होती है उनके समूह को डेल्टा कहते हैं।
समुद्र के काम
समुद्र की तरंगों से होने वाले अपरदन और निक्षेपण के कारण तटीय इलाकों का भूदृश्य बदलता रहता है। इनमें से कुछ के बारे में आगे बताया गया है।
समुद्री गुफा: लहरों के टकराने से किनारे पर की चट्टानों में दरार बनती है। समय बीतने के साथ यह दरार किसी गुफा की शक्ल ले लेती है। इसे समुद्री गुफा कहते हैं।
तटीय मेहराब: कुछ समय बीतने के बाद गुफा के अंदर की दीवार भी टूट जाती है। अब यह किसी मेहराब की तरह दिखता है। इसे तटीय मेहराब कहते हैं।
स्टैक: कुछ समय बीतने के बाद केवल एक खड़ी दीवार रह जाती है। इसे स्टैक कहते हैं।
समुद्री भृगु: समुद्र के किनारे सीधी ऊँची उठी हुई चट्टानों से एक खड़ा किनारा बनता है। इसे समुद्री भृगु या सी क्लिफ कहते हैं।
बीच: समुद्र के किनारे पर अवसाद के जमा होने से बीच या समुद्री पुलिन का निर्माण होता है।
हिमनद के काम
बर्फ की नदी को हिमनद कहते हैं। हिमनद अपने नीचे के चट्टानों का बहुत शक्ति से अपरदन करती है। हिमनद के कारण पर्वतों पर गहरे गड्ढ़े बन जाते हैं। जब इन गड्ढ़ों में पानी भर जाता है तो झील का निर्माण होता है। हिमनद द्वारा लाए गए अपरदित पदार्थों के जमा होने से हिमनद हिमोढ़ बनता है।
पवन के काम
पवन द्वारा अपरदन और निक्षेपण होने वाले बदलाव को रेगिस्तान में बहुत साफ देखा जा सकता है। रेगिस्तान की कुछ स्थलाकृतियों के बारे में आगे बताया गया है।
छत्रक शैल: इन चट्टानों का आकार किसी मशरूम की तरह होता है। ये ऊपर चौड़े होते हैं और आधार के पास पतले होते हैं। पवन द्वारा चट्टान के नीचे वाले हिस्से का अपरदन अधिक तेजी से होता है और ऊपर वाले हिस्से का अपरदन धीमी गति से होता है। इसलिए छतरी के आकार के शैल बनते हैं।
बालू टिब्बा: जब पवन बहती है तो अपने साथ रेत को उड़ाकर कहीं जमा कर देती है। इससे छोटे छोटे टीले बन जाते हैं। इन टीलों को बालू टिब्बा कहते हैं।
लोएस: जब रेत के कण बहुत छोटे आकार के और हल्के होते हैं तो पवन इन्हें एक बड़े भूभाग में जमा कर देती है। इस तरह के निक्षेपण को लोएस कहते हैं। चीन में विशाल लोएस देखने को मिलते हैं।