भारतीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक
अर्थव्यवस्था के अन्य वर्गीकरण
संगठित सेक्टर: इस सेक्टर में सारी गतिविधियाँ एक सिस्टम से होती हैं, और यहाँ कानून का पालन होता है। संगठित सेक्टर में श्रमिकों के अधिकारों को महत्व दिया जाता है। देश और उद्योग में प्रचलित परिपाटी के हिसाब से श्रमिकों को मजदूरी मिलती है। श्रमिकों को सरकार की नीतियों के अनुसार सामाजिक सुरक्षा प्रदान की जाती है। इस सेक्टर में काम करने वाले श्रमिकों को प्रोविडेंट फंड, लीव एंटाइटलमेंट, मेडिकल बेनिफिट और बीमा जैसी सुविधाएँ भी मिलती हैं।
सामाजिक सुरक्षा की जरूरत को समझने के लिये एक उदाहरण लेते हैं। मान लीजिए कि किसी परिवार के कमाने वाले मुखिया की मृत्यु हो जाती है या वह काम करने में अक्षम हो जाता है। ऐसे में उसके परिवार पर यह संकट आ जाता है कि उसका आगे का गुजारा कैसे होगा। यदि ऐसे श्रमिक के परिवार को सरकार की नीतियों के अनुसार प्रोविडेंट फंड और बीमे की रकम मिल जाती है तो फिर उस परिवार को इतना सहारा मिल जाता है कि वह दोबारा अपनी जिंदगी शुरु कर सके। यदि ऐसे श्रमिक के परिवार को उसके हाल पर छोड़ दिया जाये तो उसका भविष्य अंधेरे में पड़ जायेगा।
असंगठित सेक्टर: इस सेक्टर में कोई सिस्टम नहीं होता है और ज्यादातर कानून की अवहेलना की जाती है। छोटे दुकानदार, छोटे कारखाने वाले अक्सर इस श्रेणी में आते हैं। ऐसे संस्थानों में काम करने वाले श्रमिकों को मूलभूत अधिकार भी नहीं मिलते हैं। श्रमिकों को कम वेतन मिलता है और वह भी समय पर नहीं मिलता है। ऐसे में अन्य सुविधाओं की बात ही करना बेमानी है; जैसे छुट्टी, हेल्थ बेनिफिट, बीमा, आदि।
सार्वजनिक सेक्टर: जो कम्पनियाँ सरकार द्वारा प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से चलाई जाती हैं वे सार्वजनिक सेक्टर या पब्लिक सेक्टर में आती हैं। आजादी के बाद के शुरुआती वर्षों में भारत बहुत गरीब हुआ करता था। उस समय के निजी उद्यमियों के पास इतनी पूँजी नहीं थी कि उसे मूलभूत वस्तुओं; जैसे लोहा, इस्पात, अल्मुनियम, खाद, सीमेंट, आदि के कारखानों में लगा सकें। इसके अलावा आधारभूत संरचना; जैसे रेल, सड़क, पत्तन, विमान पत्तन, आदि बनाने के लिये भी भारी पूँजी की जरूरत थी। भारतीय उद्यमियों के पास पूँजी के अभाव को देखते हुए भारत सरकार ने पब्लिक सेक्टर की शुरुआत की। इस सेक्टर में बड़े बड़े उपक्रम शुरु किये गये; जैसे स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड, ऑयल ऐंड नैचुरल गैस कमिशन, भारत हेवी इलेक्ट्रिकल लिमिटेड, आदि।
प्राइवेट सेक्टर: जिन कम्पनियों को निजी लोगों द्वारा चलाया जाता है वे प्राइवेट सेक्टर में आती हैं। उदाहरण: टाटा, इंफोसिस, गोदरेज, मारुति, आदि।
बेरोजगारी उन्मूलन के लिये भारत सरकार की योजनाएँ
समाज के पिछड़े वर्ग की मदद के लिये और बेरोजगारी दूर करने के लिये सरकार द्वारा समय समय पर कई योजनाएँ चलाई जाती हैं। नरेगा (नेशनल रूरल एम्पलॉयमेंट गारंटी) को तत्कालीन सरकार द्वारा 2004 में शुरु किया गया था। इसे अब मनरेगा (महात्मा गांधी नेशनल रूरल एम्पलॉयमेंट गारंटी) के नाम से जाना जाता है। इस योजना के तहत हर ग्रामीण घर से कम से कम एक व्यक्ति को साल में 100 दिन के रोजगार की गारंटी दी जाती है। गाँव में रहने वाले गरीबों को ‘काम का अधिकार’ सुनिश्चित करने के लिए यह एक अनूठा पहल है।