मुद्रा और क्रेडिट
वस्तु विनिमय प्रणाली: विनिमय की वह प्रणाली जिसमें लोग एक चीज के बदले दूसरी चीज की लेन देन करते हैं, वस्तु विनिमय प्रणाली कहलाती है। मुद्रा का प्रचलन शुरु होने से पहले लोग इसी प्रणाली का प्रयोग करते थे। आज भी कुछ लोग वस्तु विनिमय प्रणाली का इस्तेमाल करते हैं।
आवश्यकताओं का दोहरा संयोग: वस्तु विनिमय के लिये जरूरी शर्त है ‘आवश्यकताओं का दोहरा संयोग’। यह वस्तु विनिमय प्रणाली की सबसे बड़ी कमजोरी भी होती है। मान लीजिए कि आप अपने गिटार के बदले एक बैंजो चाहते हैं। ऐसी स्थिति में आपको किसी ऐसे व्यक्ति को ढ़ूँढ़ना होगा जिसे अपने बैंजो के बदले एक गिटार चाहिए। ऐसे दो लोगों को ढ़ूँढ़ना; जो एक दूसरे की चीज की अदल बदल करना चाहते हैं; आसान काम नहीं है।
मुद्रा:
मुद्रा एक माध्यम है जिसके जरिये हम किसी भी चीज को विनिमय द्वारा प्राप्त कर सकते हैं। दूसरे शब्दों में मुद्रा के बदले में हम जो चाहें खरीद सकते हैं। मुद्रा के तौर पर सबसे पहले सिक्कों का प्रचलन शुरु हुआ। शुरु में सिक्के सोने-चांदी जैसी महँगी धातु से बनाये जाते थे। जब महंगी धातु की कमी होने लगी तो साधारण धातुओं से सिक्के बनाये जाने लगे। बाद में सिक्कों के स्थान पर कागज के नोटों का इस्तेमाल होने लगा। आज भी कम मूल्य वाले सिक्के इस्तेमाल किये जाते हैं।
सिक्कों और नोटों को सरकार द्वारा अधिकृत एजेंसी द्वारा जारी किया जाता है। भारत में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया द्वारा इन नोटों को जारी किया जाता है। भारत के करेंसी नोट पर आपको एक वाक्य लिखा हुआ मिलेगा जो उस करेंसी नोट के धारक को उस नोट पर लिखी राशि देने का वादा करता है।
मुद्रा के लाभ:
- यह आवश्यकताओं के दोहरे संयोग से छुटकारा दिलाती है।
- यह कम जगह लेती है और इसे कहीं भी लाना ले जाना आसान होता है।
- मुद्रा को आसानी से कहीं भी और कभी भी विनिमय के लिये इस्तेमाल किया जा सकता है।
- आधुनिक युग में कई ऐसे माध्यम उपलब्ध हैं जिनकी वजह से अब करेंसी नोट को भौतिक रूप में ढ़ोने की जरूरत नहीं है।
मुद्रा के अन्य रूप:
बैंक में निक्षेप या जमा: अपने दैनिक आवश्यकताओं के लिये हमें बहुत कम करेंसी नोट की आवश्यकता होती है। बाकी राशि लोग अक्सर बैंकों में निक्षेप या जमा के रूप में रखते हैं। बैंक में जमा धन सुरक्षित रहता है और उसपर ब्याज भी मिलता है। लोग अपनी जरूरत के हिसाब से अपने बैंक खाते से रुपये निकाल सकते हैं। बैंक खाते में जमा राशि को जरूरत (डिमांड) के हिसाब से निकाला जा सकता है इसलिए इन खातों के निक्षेप (डिपॉजिट) को डिमांड डिपॉजिट कहते हैं।
लोग अपना बकाया भुगतान करने के लिये चेक का इस्तेमाल भी करते हैं। चेक पर भुगतान पाने वाले व्यक्ति या संस्था का नाम और भुगतान की जाने वाली राशि को लिखना होता है। उसके बाद चेक जारी करने वाले व्यक्ति को चेक के नीचे हस्ताक्षर करना होता है। इसके अलावा डिमांड ड्राफ्ट के जरिये भी भुगतान किया जा सकता है। डिमांड ड्राफ्ट को बैंक से खरीदा जा सकता है। यह दिखने में चेक की तरह ही होता है। डिमांड ड्राफ्ट पर भुगतान की जाने वाली राशि, भुगतान पाने वाले व्यक्ति या संस्था का नाम और बैंक अधिकारी के हस्ताक्षर होते हैं।
क्रेडिट: बैंक में जमा कुल राशि का एक छोटा हिस्सा ही कैश के रूप में बैंक के पास रहता है। यह सामान्यत: कुल जमा राशि का 15% होता है। यह राशि इसलिए रखी जाती है ताकि जब कोई व्यक्ति अपने खाते से पैसे निकालने आये तो उसे भुगतान किया जा सके। किसी भी बैंक के कुल खाताधारकों का एक छोटा हिस्सा ही किसी एक दिन को पैसे निकालने आता है। इसलिये यह राशि इस काम के लिये पर्याप्त होती है। शेष राशि का इस्तेमाल बैंक द्वारा कर्ज देने में किया जाता है। कर्ज में जो राशि दी जाती है उसे क्रेडिट कहते हैं। इस राशि पर बैंक ब्याज लेता है। बैंक द्वारा लिया गया ब्याज दर हमेशा बैंक द्वारा दिये जाने वाले ब्याज दर से अधिक होता है। इस प्रकार से बैंक की आय का मुख्य स्रोत ब्याज ही होता है।
क्रेडिट/डेबिट कार्ड: क्रेडिट और डेबिट कार्ड आधुनिक जमाने में काफी प्रचलित हैं। डेबिट कार्ड और क्रेडिट कार्ड एक जैसे दिखते हैं। डेबिट कार्ड द्वारा कोई भी व्यक्ति अपने खाते में जमा राशि में पेमेंट कर सकता है। क्रेडिट कार्ड से पेमेंट करते समय आप बैंक से कर्ज लेते हैं। दोनों तरह के कार्डों से भुगतान इलेक्ट्रानिक रूप में होता है और किसी को कैश ढ़ोने की जरूरत नहीं होती है।