मानव संसाधन
लोग भी संसाधन होते हैं और मानव संसाधन के बिना बाकी के संसाधन बेकार साबित होते हैं। मानव संसाधन का वितरण भी इस दुनिया में असमान है। इस अध्याय में आप जनसंख्या वृद्धि, जनसंख्या के कुछ लक्षणों और जनसंख्या वितरण के बारे में पढ़ेंगे।
जनसंख्या वितरण
दुनिया की आबादी का 90 प्रतिशत दुनिया के भूपृष्ठ के केवल 30 प्रतिशत हिस्से पर रहता है। दक्षिणी गोलार्ध की तुलना में उत्तरी गोलार्ध में अधिक लोग रहते हैं। दुनिया की आबादी का 60 प्रतिशत केवल 10 देशों में रहता है।
जनसंख्या घनत्व: इकाई क्षेत्रफल में रहने वाले लोगों की संख्या को जनसंख्या घनत्व कहते हैं। इसे अक्सर प्रति वर्ग किलोमीटर में लोगों की संख्या के रूप में दिखाया जाता है। विश्व का जनसंख्या घनत्व 51 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है। सबसे अधिक जनसंख्या घनत्व दक्षिण मध्य एशिया में है और उसके बाद पूर्वी और दक्षिण पूर्वी एशिया का नम्बर आता है। भारत का जनसंख्या घनत्व 382 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है।
जनसंख्या वितरण को प्रभावित करने वाले कारक
भौगोलिक कारक
स्थलाकृति: पर्वतों और पठारों की तुलना में मैदानों में अधिक लोग रहते हैं। मैदानी इलाके में खेती, उत्पादन और कई अन्य आर्थिक क्रियाओं के लिए अनुकूल स्थिति रहती है। गंगा का मैदान दुनिया सबसे घनी आबादी वाले क्षेत्रों में से एक है।
जलवायु: लोग अत्यधिक गर्म या ठंडी जलवायु में रहना पसंद नहीं करते हैं। इसलिए सहारा रेगिस्तान और रूस तथा कनाडा के ध्रुवीय प्रदेशों में बहुत कम लोग रहते हैं।
मिट्टी: गंगा ब्रह्मपुत्र (भारत), ह्वांग ही, चांग जियांग (चीन) और नील (मिस्र) के उपजाऊ मैदानों में जनसंख्या घनत्व बहुत अधिक है। यहाँ की मिट्टी खेती के लिए सबसे अच्छी होती है।
जल: लोगों के जीने के लिए जल बहुत महत्वपूर्ण होता है। इसलिए रेगिस्तान की तुलना में नदी घाटी में अधिक लोग रहते हैं।
खनिज: जिन इलाकों में खनिज के भंडार होते हैं वहाँ आर्थिक विकास की प्रबल संभावना होती है। ऐसे इलाकों में लोग खिंचे चले आते हैं।
सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक कारक
सामाजिक कारक: जिन स्थानों पर आवास, शिक्षा और स्वास्थ्य की सुविधाएँ होती हैं, वहाँ सघन आबादी रहती है। पुणे और दिल्ली इसके अच्छे उदाहरण हैं।
सांस्कृतिक कारक: धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व वाले स्थानों पर भी लोग रहना पसंद करते हैं। इसलिए वाराणसी, जेरुसलेम और वेटिकन सिटी में सघन आबादी है।
आर्थिक कारक: औद्योगिक क्षेत्रों में लोगों को बेहतर आर्थिक अवसर मिलते हैं। इसलिए, मुम्बई में सघन आबादी है। हाल के वर्षों में दिल्ली में औद्योगिक विकास होने के कारण यह प्रवासियों के आकर्षण का केंद्र बन गई है।
जनसंख्या में बदलाव
1800 इसवी तक दुनिया की आबादी धीरे धीरे बढ़ रही थी। इस दौरान जन्म दर और मृत्यु दर बहुत अधिक थी। उचित स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में मृत्यु दर बहुत अधिक होती थी। कृषि उत्पादन कम होने के कारण भोजन की कमी की समस्या रहती थी।
1904 में दुनिया की जनसंख्या एक बिलियन पहुँच चुकी थी। उसके 150 वर्षों के भीतर यानि 1959 तक दुनिया की जनसंख्या 3 बिलियन हो गई। इस बात को जनसंख्या विस्फोट का नाम दिया गया।
उसके 40 वर्षों के बाद दुनिया की आबादी दोगुनी हो गई और 1999 में 6 बिलियन हो गई। स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार और भोजन की बेहतर सप्लाई के कारण ऐसा संभव हुआ। इस दौरान भी जन्म दर और मृत्यु दर बहुत अधिक थी।
जन्म दर: प्रति 1000 जनसंख्या में होने वाले जीवित शिशुओं के जन्म को जन्म दर कहते हैं।
मृत्यु दर: प्रति 1000 जनसंख्या में मरने वालों की संख्या को मृत्यु दर कहते हैं।
जब मृत्यु दर, जन्म दर से अधिक होती है तो जनसंख्या घटती है। जब जन्म और मृत्यु दर बराबर होते हैं तो जनसंख्या ना तो घटती है और ना ही बढ़ती है। जब जन्म दर की तुलना में मृत्यु दर कम होती है तो जनसंख्या बढ़ती है। जन्म दर और मृत्यु दर के अंतर को जनसंख्या की प्राकृतिक वृद्धि दर कहते हैं।