उपभोक्ता के अधिकार
कंज्यूमर फोरम:
भारत में उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिये स्थानीय स्तर पर कई संस्थाओं का गठन हुआ है। इन संस्थाओं को कंज्यूमर फोरम या कंज्यूमर प्रोटेक्शन काउंसिल कहते हैं। इन संस्थाओं का काम है किसी भी उपभोक्ता को कंज्यूमर कोर्ट में मुकदमा दायर करने में मार्गदर्शन करना। कई बार ऐसी संस्थाएँ कंज्यूमर कोर्ट में उपभोक्ता की तरफ से वकालत भी करती हैं। ऐसे संस्थानों को सरकार की तरफ से अनुदान भी दिया जाता है ताकि उपरोक्ता जागरूकता की दिशा में ठोस काम हो सके।
आजकल कई रिहायशी इलाकों में रेजिडेंट वेलफेअर एसोसियेशन होते हैं। यदि ऐसे किसी एसोसियेशन के किसी भी सदस्य को किसी विक्रेता या सर्विस प्रोवाइडर द्वारा ठगा गया हो तो ये उस सदस्य के लिये मुकदमा भी लड़ते हैं।
कंज्यूमर कोर्ट
यह एक अर्ध-न्यायिक व्यवस्था है जिसमें तीन लेयर होते हैं। इन स्तरों के नाम हैं जिला स्तर के कोर्ट, राज्य स्तर के कोर्ट और राष्ट्रीय स्तर के कोर्ट। 20 लाख रुपये तक के क्लेम वाले केस जिला स्तर के कोर्ट में सुनवाई के लिये जाते हैं। 20 लाख से 1 करोड़ रुपये तक के केस राज्य स्तर के कोर्ट में जाते हैं। 1 करोड़ से अधिक के क्लेम वाले केस राष्ट्रीय स्तर के कंज्यूमर कोर्ट में जाते हैं। यदि कोई केस जिला स्तर के कोर्ट द्वारा खारिज कर दिया जाता है तो उपभोक्ता को राज्य स्तर पर; और उसके बाद; राष्ट्रीय स्तर पर अपील करने का अधिकार होता है।
राष्ट्रीय कंज्यूमर दिवस
24 दिसंबर को राष्ट्रीय कंज्यूमर दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह वही दिन है जब भारतीय संसद ने कंज्यूमर प्रोटेक्शन ऐक्ट लागू किया था। भारत उन गिने चुने देशों में से है जहाँ उपभोक्ता की सुनवाई के लिये अलग से कोर्ट हैं। हाल के समय में उपभोक्ता आंदोलन ने भारत में अच्छी पैठ बनाई है। ताजा आँकड़ों के अनुसार भारत में 700 से अधिक कंज्यूमर ग्रुप हैं। उनमे से 20 – 25 अच्छी तरह से संगठित हैं और अपने काम के लिये जाने जाते हैं।
लेकिन उपभोक्ता की सुनवाई की प्रक्रिया जटिल, महंगी और लंबी होती जा रही है। वकीलों की ऊँची फीस के कारण अक्सर उपभोक्ता मुकदमे लड़ने की हिम्मत ही नहीं जुटा पाता है।