वैश्वीकरण और भारतीय अर्थव्यवस्था
वैश्वीकरण के कारक:
1980 – 90 के दशक तक अधिकांश देश अपने बाजार को विश्व के बाजार से अलग थलग रखना पसंद करते थे। ऐसा इसलिए किया जाता था ताकि स्थानीय उद्योग धंधों को बढ़ावा मिल सके। इसके लिये भारी आयात शुल्क लगाया जाता था ताकि आयातित सामान महंगे हो जाएँ। इस तरह की नीतियों को ट्रेड बैरियर कहते हैं।
वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन ने अपने सदस्य देशों को इस बात के लिये सहमत कर लिया कि ट्रेड बैरियर घटाए जाएँ। वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन पूरी दुनिया में बेरोकटोक आर्थिक अवसर का पक्षधर रहा है। भारत भी इस संस्था का एक सदस्य है।
भारत सरकार ने 1991 में उदारवादी नीतियों की शुरुआत की। उसके बाद भारत में कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों का पदार्पण हुआ। आज उन उदारवादी नीतियों के परिणाम हर ओर दिखाई देते हैं। 1990 के पहले भारत में यदि किसी को कार खरीदना होता था तो दो ही विकल्प थे; एंबेसडर या प्रीमियर पद्मिनी। उसके लिये भी नम्बर लगाना होता था और नम्बर आने में दो साल से भी अधिक लगते थे। अब भारत के बाजार में विश्व की नामी गिरामी कम्पनियों की कारें उपलब्ध हैं और एक व्यक्ति जिस दिन चाहे उस दिन अपने पसंद की कार खरीद सकता है।
वैश्वीकरण के परिणाम:
रोजगार के बेहतर अवसर: वैश्वीकरण से आर्थिक गतिविधियों में तेजी आई है। नई नई कम्पनियों के आने से रोजगार के नये नये अवसर उत्पन्न हुए हैं। इसके कारण कई नये आर्थिक केंद्रों का विकास हुआ है, जैसे; गुड़गाँव, चंडीगढ़, पुणे, हैदराबाद, आदि।
जीवनशैली में बदलाव: वैश्वीकरण का प्रभाव लोगों की जीवनशैली पर भी पड़ा है। 1990 के पहले तक लोग दो जोड़ी पैंट शर्ट में गुजारा कर लेते थे। अब तो लोगों के पास हर मौके के लिये अलग अलग ड्रेस होते हैं। पहले जींस की पैंट बहुत कम लोगों के पास हुआ करती थी। अब अधिकांश लोग जींस की पैंट का इस्तेमाल करने लगे हैं। लोगों का खान पान भी बदल गया है। अब मैगी के नूडल्स इस तरह से खरीदे जाते हैं जैसे महीने का राशन खरीदा जाता हो।
विकास के असमान लाभ: वैश्वीकरण से आर्थिक असमानता भी तेजी से बढ़ी है। किसी बहुराष्ट्रीय कम्पनी में उँचे पद पर काम करने वाला व्यक्ति लाखों रुपये का वेतन लेता है। वहीं दूसरी ओर दिहाड़ी मजदूर को सरकार द्वारा निर्धारित मजदूरी भी नहीं मिल पाती है। आज भी हमारी जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा ऐसा है जिसे दो जून की रोटी भी नसीब नहीं होती है।
विकसित देशों द्वारा गलत तरीकों का इस्तेमाल: विकसित देश आज भी ट्रेड बैरियर का इस्तेमाल कर रहे हैं। वे अपने किसानों को भारी अनुदान देते हैं। विकासशील देशों को इसके बदले कुछ भी नहीं हासिल होता है।
सारांश:
वैश्वीकरण आधुनिक युग की ऐसी वास्तविकता है जिससे हम मुँह नहीं मोड़ सकते। वैश्वीकरण से यदि फायदे हुए हैं तो नुकसान भी हुए हैं। लेकिन नुकसान की तुलना में फायदे अधिक हुए हैं। अब जरूरत है ऐसी नीतियों की जिनसे वैश्वीकरण का लाभ जनमानस तक पहुँचे। जब हर तबके का आदमी एक निश्चित स्तर की जीवनशैली जीने लगेगा तभी वैश्वीकरण को सफल माना जायेगा।